कल के लिए आज को न खोना, आज ना ये कल आयेगा !

कल के लिए आज को न खोना, आज ना ये कल आयेगा !

 

कभी ना खोना तुम सुअवसर बस थोड़ी सी सुविधा के लिए |

इक बार की ख़ुशी में सब सुअवसर लुटा दिया तो क्या जिये ||

जैसे की ठंडी में ठिठुर रहा ये व्यक्ति सीढ़ी को ही जला गया |

जिसको बनना था उसका आधार वो उसी को ही खा गया ||

जिस कुएं में से निकलने के लिये इक साधन थी वो सीढ़ी |

जो बना और बदल सकती थी उसकी किस्मत पीढ़ी दर पीढ़ी ||

जरा सी ठंडक से डरके वो सब स्वाहा हो गया जानी |

अपनी किस्मत को कोस रहा वो पिला पिला कर पानी ||

सो बच्चो सुन लो ध्यान से ये अजब सी इक कहानी |

पहले के ज़माने में तो ये काम करती थीं दादी या नानी ||

पर अब तो तुम्हे खुद ही पड़ना और सीखना है ये सब भाई |

सो उठो और निकल पड़ो, क्यों सोये पड़े हो लेकर रजाई ||

अपनी सभी मज्बुरिओं को बना लो अपनी ही ताकत |

निकल पड़ो तुम लेकर तलवार छोड़ो अपनी ये नजाकत ||

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