कभी ना खोना तुम सुअवसर बस थोड़ी सी सुविधा के लिए |
इक बार की ख़ुशी में सब सुअवसर लुटा दिया तो क्या जिये ||
जैसे की ठंडी में ठिठुर रहा ये व्यक्ति सीढ़ी को ही जला गया |
जिसको बनना था उसका आधार वो उसी को ही खा गया ||
जिस कुएं में से निकलने के लिये इक साधन थी वो सीढ़ी |
जो बना और बदल सकती थी उसकी किस्मत पीढ़ी दर पीढ़ी ||
जरा सी ठंडक से डरके वो सब स्वाहा हो गया जानी |
अपनी किस्मत को कोस रहा वो पिला पिला कर पानी ||
सो बच्चो सुन लो ध्यान से ये अजब सी इक कहानी |
पहले के ज़माने में तो ये काम करती थीं दादी या नानी ||
पर अब तो तुम्हे खुद ही पड़ना और सीखना है ये सब भाई |
सो उठो और निकल पड़ो, क्यों सोये पड़े हो लेकर रजाई ||
अपनी सभी मज्बुरिओं को बना लो अपनी ही ताकत |
निकल पड़ो तुम लेकर तलवार छोड़ो अपनी ये नजाकत ||