जब सारी कायनात निशा की आगोश में खो जाती है
तब इस एहसास का इक नया अक्स सामने लाती है
ये निस्तभ्ध मौन भी हर किसी को नहीं रास आता
कोई विरला ही इसकी अदम्य शक्ति है झेल पाता
अपने भीतर के शोर के जब पार उतर जायोगे
अपने को ही उस पार भी खड़ा तुम सामने पायोगे
कभी इश्क तो कभी रश्क में जिसे तलाशा बार बार
रूह के अंतर्मन में ही हो गया आखिर दीदार
जिस दिन उन्माद में बहकर फिर दौड़ेगा संसार
उस दिन याद करोगे ये बेशकीमती समां यार
अभी उकता गए हो बंध के बैठे हो नीरस उदास
फिर न मिलेगा ये वक़्त तो कर लो अभी कयास
इस वक़्त को कुदरत की नियामत तुम मानो
हैं यह पल अनमोल तुम मानो या ना जानो
इक गुमनाम हमसफ़र इन अंधेरों हमेशा है साथ
अगर गुज़र के जाना है उजाले में तो थामो हाथ
इस गहरे एकांत समंदर में जो बेख़ौफ़ उतर जायोगे
तो उस पार एक अनंत शक्ति का अनुभव तुम पायोगे
गर तन्हाई से डरके बस किनारे से करोगे दीदार
न मिल पायोगे स्वयं से ना ही मिलेगा संसार
कहाँ असशक्त से बने दीन हीन हो रहे हो गुम
शक्ति का करो आवाहन, उर्जा के भण्डार हो तुम