चारों तरफ लक्कड़हारे हैं, पेड़ कहाँ पर हारे हैं
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चारों तरफ लक्कड़हारे हैं, फिर भी पेड़ कहाँ हारे हैं जम के काट रहे हरिआली को, फिर भी हरे भरे नज़ारे हैं यही तो है जीवन का अर्थ, यही है इस जीवन का सार जिसको इतना सा समझ आ गया, उसका हो गया बेडा पार कुरुक्षेत्र के मैदान की तरह सब तरफ है हाहाकार और […]