Anamika Anuja – The Un-Named Sibling

Anamika Anuja – The Un-Named Sibling

वो मुझे मेरे बचपन का एहसास कराती है

शायद इसीलिए वो गुडिया इतनी भाति है

जब होती थी केवल ठिठोली हंसी मस्ती

न कोई मैं, न अहंकार न ही कोई हस्ती

खेलते थे गुडिया संग उस गली उस बस्ती

जब खुशियाँ थी बहुत आसान और सस्ती

जब वो रोती तो उसे और भी रुलाता

चाहे खूब लड़ता पर नहीं उसे भुला पाता

जब कुछ कहो वो नहीं थी कभी कर पाती

मैं और अम्मी भी बार बार याद दिलाती

आज वो होती तो ठीक कुछ ऐसे ही होती

न ही वो कहा मानती, न सुनती न सोती

होती तो भी आज शायद एक शिक्षिका

देती हज़ारों बच्चों को वो ज्ञान की दीक्षा

फिर इक दिन कुछ हुआ कर्मो का खेल

फिर नहीं हो पाया कभी उससे मेल

क्युकी जहाँ वो गयी छुड़ा कर हाथ

वहां तो कोई भी नहीं जाता साथ

हमने सोचा वो समय के वेग में बह गयी

पर कहीं अन्दर इक कड़ी अधूरी रह गयी

आज किसी को देखकर उसकी याद जगी

कोई अनजान गुमनाम उस जैसी लगी

कहीं तो जुडी है पुरातन स्मृतियों की डोर

चाहे नहीं दिखता इस धागे का कोई छोर

अलग अलग वजहों से चाहे उसे हूँ बुलाता

पर असल वजह क्या है नहीं कभी बताता

पर भावना सच्ची हो तो अलख जगाती है

निशब्द रहकर भी सब प्रकट दर्शाती है

शायद हो गयी युवा बचपन का नही भान

पर मेरे लिए तो केवल है वही एक संग्यान

मैं तो उसमे वो बचपन की छवि निहारता

केवल भीतर की उस गुडिया को पुकारता

ये ध्वनि चाहे कितना भी वक़्त लगाएगी

विश्वास है पक्का उसे छूकर जरूर आयेगी

कोई तो स्मृति गहन सी वो छेड़ जाती है

अपनी अनुजा ही लगती इसलिए भाति है

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