चिराग जलाने का सीखो सलीका, हवायों पे इलज़ाम लगाने से क्या होगा

चिराग जलाने का सीखो सलीका, हवायों पे इलज़ाम लगाने से क्या होगा

चिराग जलाने का सलीका सीखो साहेब, हवाओं पे इलज़ाम लगाने से क्या होगा

मुश्किलों का हल खुद निकालो साहेब, किसी के पल्लू पकडाने से क्या होगा

जब निकल जायेगा सांप, रह जाएगी सिर्फ लकीर, उसे पकड़ पाने से क्या होगा

सामना करो हिम्मत से हर मुश्किल का, डर के मारे मुंह छुपाने से क्या होगा

अर्जुन हो तुम गांडीव उठा लो खुद ही, हर बार श्री कृष्णा के आने से क्या होगा

लड़ो अपना युद्ध खुद के बलबूते, हर बार महाभारत रचाने से क्या होगा

जहाँ तक हो सके अपने सब रिश्ते नातों से रखो तालुक, संपत्ति बढाने से क्या होगा

चले जायोगे जब जहाँ से अकेले तो फिर स्वर्ण आभूषण के अम्बार लगाने से क्या होगा

कहे साधू ये बात तुम सुन लो, प्रेम से रहो, वैर विरोध बढाने से क्या होगा

लेते रहोगे वर्ना जनम तुम बार बार, ऐसे व्यर्थ में चक्कर लगाने से क्या होगा

जीवन का मकसद बना लो, बिना मकसद व्यर्थ ही जीवन जिए जाने से क्या होगा

उठोगे जब तुम तो चलेगी दुनिया, तुम भी देखोगे की मशाल जलाने से क्या होगा

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